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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2784
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना- सरल प्रश्नोत्तर

 

अध्याय - 2   
भारतीय काव्य सिद्धांत

 

अलंकार सिद्धान्त

 

प्रश्न- भारतीय काव्यशास्त्र में आचार्य ने अलंकारों को काव्य सौन्दर्य का भूल कारण मानकर उन्हें ही काव्य का सर्वस्व घोषित किया है। इस सिद्धान्त को स्वीकार करने में आपकी क्या आपत्ति है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।

अथवा
'अलंकार सिद्धान्त' पर प्रकाश डालिए।
अथवा
'अलंकार सम्प्रदाय' के सम्बन्ध में प्रसिद्ध अलंकारवादी आचार्यों के मतों की समीक्षा कीजिए।
अथवा
अलंकार सम्प्रदाय के सम्बन्ध में प्रसिद्ध अलंकारवादी आचार्यों के मत स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

 

मूल स्थापनाएँ एवं अलंकारों का वर्गीकरण : अलंकार सिद्धान्तं अलंकार भाषा और भाव दोनों की रमणीयता में वृद्धि करने वाले साधन हैं। इनका प्रयोग भी अति प्राचीनकाल से इसी रूप में हो रहा है। संसार के प्राचीनतम ग्रंथ 'ऋग्वेद' में अनेक स्थलों पर अलंकारों का प्रयोग सुन्दर रूप से हुआ है।

 

संस्कृत में अलंकार विवेचन का क्रमबद्ध इतिहास भरतमुनि कृत 'नाट्यशास्त्र' से प्रारम्भ होता है यद्यपि वैदिक वाङ्मय में भी अलंकारों के (विशेषतः संहिताओं में ) प्रभूत उदाहरण प्राप्त होते हैं, तथापि शास्त्रीय दृष्टि से उनके स्वरूप की मीमांसा इन ग्रंथों में प्राप्त नहीं होती। 'शतपथ ब्राह्मण' में 'छांदोग्य उपनिषद्' में स्पष्टतः अलंकार शब्द का प्रयोग दिखाई पड़ता है। यास्कृत कृत 'निरुक्त' में भी इसका प्रयोग हुआ है। अलंकारों के प्रयोग बाहुल्य के लिए 'रामायण', 'महाभारत' के नाम भी विशेष उल्लेखनीय हैं। "जब प्रभूत मात्रा में आलोच्य विषय का विस्तार हो जाता है, तब उसक विवेचन, स्पष्टीकरण, स्वरूप निरूपण के लिए सैद्धान्तिक ग्रंथों की सृष्टि होती है।" यह कथन संस्कृत के अलंकार निरूपण पर अक्षरशः सत्य सिद्ध होता है। (भारतीय आलोचनाशास्त्र - डॉ. राजवंश सहाय )

अलंकार की परिभाषा : सामान्य रूप में प्रत्येक शोभावर्द्धक वस्तु अलंकार कहलाने की अधिकारिणी है। इसकी व्याख्या अलम = पर्याप्त + कार = करने वाला अर्थ शोभा में अत्यधिक वृद्धि करने वाला करके की गयी। इसको कुछ विद्वानों ने इस प्रकार भी प्रस्तुत किया अलम् < + कृ + 'घञ्' इसका अर्थ है आभूषण। वैयाकरण इसको इस प्रकार से समझते हैं - 'अलंकारोतिः इति अलंकारः। अर्थात् वह जो सुशोभित करती है, अलंकार है। इसी को कर्मवाच्य में इस प्रकार कहा जा सकता है 'अलंक्रियतेऽनेनत्यलंकारः' अर्थात् वह, जिसके द्वारा शोभा होती है - अलंकार कहलाता है। .

भामह - भामह के अनुसार शब्द और अर्थ की वक्रोक्ति ही वाणी का अलंकार है।

दण्डी - 'काव्य-शोभाकारन् धर्मातलंकारन् प्रचक्षते। (काव्य की शोभा को बढ़ाने वाले गुण या धर्म अलंकार हैं।)

विश्वनाथ - आपने 'साहित्य दर्पण' में अलंकार की परिभाषा इस प्रकार दी है

शब्दार्थ योरस्थिरा ये धर्माः शोभाति शापिनः।

अर्थात् शोभा का अतिशय करने वाले गुण ही अलंकार हैं।

मूल स्थापनाएँ - अलंकारों का प्रयोग अति प्राचीनकाल से हो रहा है। संसार के प्राचीनतम् ग्रन्थ 'ऋग्वेद' में अनेक स्थलों पर उपमा, रूपक, विरोधाभास आदि का सुन्दर प्रयोग हुआ है।

उत त्वः यश्यत्न ददर्श वाचमुत्व - श्रृणोत्येनत्।
उते त्वस्मै तत्वं जायेव् पत्ये उषती सुवासाः ॥

कुछ लोग ऐसे हैं जो देखते हुए भी वाणी के स्वरूप को नहीं देख पाते तथा सुनते हुए भी नहीं सुन पाते। पाते। कुछ के सामने वाणी अपना सम्पूर्ण सौन्दर्य ऐसे प्रस्तुत कर देती है, जैसे- सुन्दरतम वेशभूषा से अलंकृत होकर पत्नी अपने पति के सामने अपने सौन्दर्य को पूर्णरूप से प्रदर्शित कर देती है इसमें विरोधाभास और उपमा की स्पष्ट झलक है।)

भारतीय काव्यशास्त्र में विभिन्न सम्प्रदायों का उदय काव्य की आत्मा के विवाद को लेकर हुआ। अलंकार सम्प्रदाय के आचार्यों ने 'अलंकार' को ही काव्य की आत्मा स्वीकार किया। संस्कृत के अलंकार- विवेचन का क्रमबद्ध इतिहास 'नाट्यशास्त्र' (भरत) से प्रारम्भ माना गया है। अलंकारों के उदाहरण तो संहिताओं में भी उपलब्ध हैं।

अलंकारवादी आचार्य : ये आचार्य अलंकार को ही काव्य की आत्मा मानते हैं और रस को अलंकार में ही समाहित कर लेते हैं। ये प्रमुख आचार्य हैं भामह, दण्डी, उद्भट, जयदेव, रुद्रट, प्रतीहारेन्दुराज और वामन।

(1) भामह : "रस सिद्धान्त की भाँति अलंकार सिद्धान्त भी परम्परा-प्रवाह के रूप में विकसित हो रहा था, जिसकी पुष्टि 'काव्यालंकार' में वर्णित विषयों की पूर्णता एवं व्यवस्था से होती है और उसके आधार पर प्राक् भामहीय अलंकार - विवेचन की श्रृंखला जोड़ी जा सकती है।"

(2) दण्डी : दण्डी अलंकार को काव्य की शोभा का उत्पादक मानते हैं

'काव्य शोभाकरान् धर्मान् अलंकरान् प्रचक्षते।

दण्डी की दृष्टि अधिक उदार है। वे अलंकारों को महत्व देते हुए भी रस, रीति और गुण को आदर प्रदान करते हैं।

(3) उद्भट : आपने 'काव्यालंकार सार संग्रह' के अतिरिक्त 'भामह विवरण' नाम से भामह के 'काव्यालंकार' की टीका भी लिखी है। आपको इस दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है कि आपने अलंकार को काव्य का प्रमुख एवं अंतरंग तत्व स्वीकार किया है। अंतरंग का अर्थ 'आत्मा' ही लगाया जाता है। साथ ही 'आपने रस की महत्ता 'रसवत् अलंकार' के द्वारा स्वीकार की है।

(4) वामन : वामन का नाम अलंकारवादी आचार्यों में बड़े आदर के साथ लिया जाता है। आपने 'काव्यालंकार सूत्र' की रचना की। आपने अलंकार को ही सौन्दर्य का कारण माना और काव्य में 'सौन्दर्य अलंकार:' आकर्षण अलंकार के ही कारण आता है, अलंकार ही काव्य को ग्राह्य बनाता है। 'काव्यंग्राह्यमलंकारात्।

(5) रुद्रट : इनका काल 825 ई. से 878 के मध्य माना जाता है। आपने 'काव्यालंकार' में 66 अलंकारों का उल्लेख किया है। इनका अलंकार विवेचन वैज्ञानिक माना जाता है। आपने अलंकारों के चार वर्ग किये वास्तव, औषम्य, अतिशय और श्लेष। अपने शब्दालंकारों का स्वतन्त्र रूप से विवेचन किया। 'नवीन अलंकारों के अविष्कार, उनका वैज्ञानिक वर्गीकरण एवं उनकी संख्या में विस्तार तथा विवेचन में स्पष्टता के कारण रुद्रट का स्थान प्रथण श्रेणी के आचार्यों की पंक्ति में आता है।

(6) कुन्तक : वक्रोक्तिवादी आचार्य कुन्तक ने वाक्य वक्रता के अन्तर्गत अलंकारों का विवेचन कर कई नवीनताएँ प्रस्तुत कीं। आपने अलंकारों को केवल 20 तक सीमित कर दिया।

(7) भोज : भोज ने 'सरस्वती - कंठाभरण' एवं 'श्रृंगार प्रकाश' में अलंकारों का विवेचन करते हुए कुछ ऐसे अलंकारों का भी उल्लेख किया, जिनकी चर्चा अभी तक नहीं हुई थी।

(8) मम्मट : मम्मट ने 'काव्यप्रकाश' में अलंकारों का उल्लेख करते हुए सामान्य, वक्रोक्ति सम और अतद्गुण चार अलंकारों की उद्भावना की।

(6) अग्नि पुराण : इसमें अर्थ के चमत्कार को अलंकार मानते हुए यह स्वीकार किया गया कि इसके बिना शब्द - सौन्दर्य के होते हुए भी काव्य मनोहर नहीं हो सकता। अर्थालंकार के बिना वाणी विधवा हो जाती है।

(10) जयदेव : ये अलंकारवादी आचार्यों में अन्तिम प्रसिद्ध आचार्य माने जाते हैं। इनके समय तक काव्यशास्त्र में ध्वनि की स्थापना हो चुकी थी तथा रस को ध्वनि के अन्तर्गत लाने के लिए ध्वनि का एक भेद रस-ध्वनि स्वीकार कर लिया गया था।

हिन्दी आचार्य : हिन्दी में राजाओं के दरबारी कवियों द्वारा दोहों में अलंकार-ग्रन्थ लिखने का उल्लेख है पर वह अप्राप्य है।

(1) केशवदास : केशवदास को अलंकारवादी आचार्य माना जाता है। उनका यह भाव विख्यात है।

जदपि सुजाति सुलक्षणी, सुबरन सरस सुवृत्ति।
भूषन बिनु न बिराजई, कविता, बनिता मित्त ॥

देव : देव ने 'भावविलास' और 'काव्य रसायन' में अलंकारों का उल्लेख किया है। वे अलंकार को काव्य का पाँचवा अंग मानकर उसकी महत्ता स्वीकार करते हैं -

मानुषं भाषा मुख्य रस, भाव, नायिका, छन्द।
अलंकार पंचांग ये, कहत सुनत आनन्द ॥

आधुनिककाल : आचार्य शुक्ल अलंकारों को काव्य का बाह्य तत्व स्वीकार करते हैं। "भावानुभव में वृद्धि करने के गुण का नाम ही अलंकार की रमणीयता है।"

विश्वनाथ : ये उन्हें साधनरूप में स्वीकार करते हैं- अलंकारों के उचित प्रयोग से भाव प्रतीत में सहायता मिलती है। काव्य में इनकी महत्ता या उपयोगिता इस रूप में है कि ये भाव तथ्य तक पहुँचावे। यदि भाव या वस्तु में से पृथक हो जाएंगे तो काव्य का स्वरूप नष्ट हो जायेगा और ये निरर्थक हो जायेंगे।

आ. नन्ददुलारे बाजपेयी : "अलंकार केवल पहले से सुन्दर वस्तु को अधिक सुन्दर बनाने के उपकरण नहीं हैं। काव्य के मौलिक स्वरूप से उनका गहरा सम्बन्ध है, उसे काव्य की आत्मा मानना अन्ततः काव्य के विशिष्ट स्वरूप की ही प्रतिष्ठा करना है।'

डॉ. नागेन्द्र : आपने 'रीतिकाव्य' की भूमिका में अलंकारों को काव्य शोभा का कारण ही स्वीकार किया।

सुमित्रानन्दन पन्त : पंत जी अलंकारों को भावोत्कर्ष में सहायक मानते हैं - "कविता में भी विशेष अलंकारों .... से विशेष भाव की अभिव्यक्ति करने में सहायता मिलती है।'

"अलंकार केवल वाणी की सजावट के लिए नहीं, वे भावाभिव्यक्ति के विशेष द्वार हैं।'

रामकुमार वर्मा : ये अलंकारों को भाषा की परिष्कृत सृष्टि, भाव तीव्रता के लिए महत्वपूर्ण मानते हैं।

रामधारी सिंह 'दिनकर' : ये अलंकारों को शोभाकारक ही मानते हैं, पर ये उसे आन्तरिक, शोभा का साधन स्वीकार करते हैं- "कविता में अलंकारों के प्रयोग का वास्तविक उद्देश्य अतिरंजन नहीं. वस्तुओं का अधिक से अधिक सुनिश्चित वर्णन ही होता है।"

यदि अलंकार सिद्धान्त से अलंकार सम्प्रदाय का पर्याय काव्य की आत्मा स्वीकार जाय तो इस पर कई आक्षेप लगाये गये हैं। वास्तव में अलंकार सम्प्रदाय का कार्य अलंकार को महत्वपूर्ण स्थान दिलाना था। यह कार्य हिन्दी में भी नई कविता अथवा प्रयोगवाद के उद्भव तक किसी न किसी रूप में होता रहा है। रीतिकाल आचार्यों एवं कवियों ने अलंकार को काव्य की आत्मा चाहे न कहा हो, पर अपनी कविता को अलंकारों से बुरी तरह लाद दिया। " किन्तु अलंकार सम्प्रदाय (सिद्धान्त) के व्यवहारिक लाभों को नहीं नकारा जा सकता। अलंकार-सम्प्रदाय के कारण ही भाषागत रमणीयता के रहस्य का इतना विस्तृत एवं सूक्ष्म वर्णन हो सका। अलंकारवादियों ने भाषागत रमणीयता के प्रत्येक उतार-चढ़ाव, प्रत्येक हाव-भाव भंगिमा को पहचानने की कोशिश की। विश्व के अन्य किसी साहित्य में भाषागत रमणीयता का इस प्रकार का विवेचन नहीं मिलता।"  --देवीशरण रस्तोगी - साहित्यशास्त्र

अलंकारों का वर्गीकरण : अलंकारों का वर्गीकरण एवं विभाजन विद्वानों ने अनेक प्रकार से किया है, पर इसके स्वाभाविक आधार दो ही मान्य हैं- समता, विषमता। अधिकांश अलंकार समतामूलक हैं। समता का यह आधार शब्द एवं अर्थ दोनों पर आधारित अलंकारों में समान रूप से प्रयुक्त हुआ है। अनुप्रास एवं यमक प्रमुख शब्दालंकार हैं। इनका आधार वर्णों एवं शब्दों की समानता है। इसी प्रकार रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का आधार भी समता ही है। एक वस्तु से दूसरी वस्तु की समानता प्रतिपादित करना ही इन अलंकारों का कार्य है। इसके विपरीत कुछ अलंकार विषमता पर भी आधारित हैं, जैसे प्रतीप, असंगति, विभावना, विशेषोक्ति आदि।

अलंकार का वर्गीकरण सर्वप्रथम आचार्य रुद्रट ने किया। उन्होंने अलंकार के चार वर्ग माने-

(1) वास्तव
(2) औपम्य
(3) अतिशय
(4) श्लेष।

इसके पश्चात् रूपक ने अलंकारों को सात वर्गों में विभाजित किया-

(1) सादृश्य गर्भ,
(2) विरोध गर्भ,
(3) श्रृंखलाबद्ध
(4) तर्क न्यायमूलक
(5) काव्य न्यायमूलक,
(6) लोक न्यायमूलक,
(7) गूढार्थ प्रीतिमूलक।

डॉ. राजवंश सहाय 'हीरा' ने अलंकारों के नौ वर्ग किये- .

(1) शब्दालंकार वर्ग,
(2) साधर्म्यमूलक अलंकार,
(3) विरोधमूलक अलंकार,
(4) श्रृंखलामूलक अलंकार,
(5) गूढ़ार्थमूलक अलंकार,
(6) गोपनमूलक अलंकार,
(7) लोकन्याय मूलक अलंकार,
(8) अतिशयमूलक अलंकार,
(6) उभयालंकार।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- काव्य के प्रयोजन पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- भारतीय आचार्यों के मतानुसार काव्य के प्रयोजन का प्रतिपादन कीजिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी आचायों के मतानुसार काव्य प्रयोजन किसे कहते हैं?
  4. प्रश्न- पाश्चात्य मत के अनुसार काव्य प्रयोजनों पर विचार कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी आचायों के काव्य-प्रयोजन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए?
  6. प्रश्न- आचार्य मम्मट के आधार पर काव्य प्रयोजनों का नाम लिखिए और किसी एक काव्य प्रयोजन की व्याख्या कीजिए।
  7. प्रश्न- भारतीय आचार्यों द्वारा निर्दिष्ट काव्य लक्षणों का विश्लेषण कीजिए
  8. प्रश्न- हिन्दी के कवियों एवं आचार्यों द्वारा प्रस्तुत काव्य-लक्षणों में मौलिकता का अभाव है। इस मत के सन्दर्भ में हिन्दी काव्य लक्षणों का निरीक्षण कीजिए 1
  9. प्रश्न- पाश्चात्य विद्वानों द्वारा बताये गये काव्य-लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
  10. प्रश्न- आचार्य मम्मट द्वारा प्रदत्त काव्य-लक्षण की विवेचना कीजिए।
  11. प्रश्न- रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्' काव्य की यह परिभाषा किस आचार्य की है? इसके आधार पर काव्य के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
  12. प्रश्न- महाकाव्य क्या है? इसके सर्वमान्य लक्षण लिखिए।
  13. प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  14. प्रश्न- मम्मट के काव्य लक्षण को स्पष्ट करते हुए उठायी गयी आपत्तियों को लिखिए।
  15. प्रश्न- 'उदात्त' को परिभाषित कीजिए।
  16. प्रश्न- काव्य हेतु पर भारतीय विचारकों के मतों की समीक्षा कीजिए।
  17. प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  18. प्रश्न- स्थायी भाव पर एक टिप्पणी लिखिए।
  19. प्रश्न- रस के स्वरूप का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  20. प्रश्न- काव्य हेतु के रूप में निर्दिष्ट 'अभ्यास' की व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- 'रस' का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके अवयवों (भेदों) का विवेचन कीजिए।
  22. प्रश्न- काव्य की आत्मा पर एक निबन्ध लिखिए।
  23. प्रश्न- भारतीय काव्यशास्त्र में आचार्य ने अलंकारों को काव्य सौन्दर्य का भूल कारण मानकर उन्हें ही काव्य का सर्वस्व घोषित किया है। इस सिद्धान्त को स्वीकार करने में आपकी क्या आपत्ति है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- काव्यशास्त्रीय सम्प्रदायों के महत्व को उल्लिखित करते हुए किसी एक सम्प्रदाय का सम्यक् विश्लेषण कीजिए?
  25. प्रश्न- अलंकार किसे कहते हैं?
  26. प्रश्न- अलंकार और अलंकार्य में क्या अन्तर है?
  27. प्रश्न- अलंकारों का वर्गीकरण कीजिए।
  28. प्रश्न- 'तदोषौ शब्दार्थों सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि कथन किस आचार्य का है? इस मुक्ति के आधार पर काव्य में अलंकार की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- 'काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते' कथन किस आचार्य का है? इसका सम्बन्ध किस काव्य-सम्प्रदाय से है?
  30. प्रश्न- हिन्दी में स्वीकृत दो पाश्चात्य अलंकारों का उदाहरण सहित परिचय दीजिए।
  31. प्रश्न- काव्यालंकार के रचनाकार कौन थे? इनकी अलंकार सिद्धान्त सम्बन्धी परिभाषा को व्याख्यायित कीजिए।
  32. प्रश्न- हिन्दी रीति काव्य परम्परा पर प्रकाश डालिए।
  33. प्रश्न- काव्य में रीति को सर्वाधिक महत्व देने वाले आचार्य कौन हैं? रीति के मुख्य भेद कौन से हैं?
  34. प्रश्न- रीति सिद्धान्त की अन्य भारतीय सम्प्रदायों से तुलना कीजिए।
  35. प्रश्न- रस सिद्धान्त के सूत्र की महाशंकुक द्वारा की गयी व्याख्या का विरोध किन तर्कों के आधार पर किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- ध्वनि सिद्धान्त की भाषा एवं स्वरूप पर संक्षेप में विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- वाच्यार्थ और व्यंग्यार्थ ध्वनि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  38. प्रश्न- 'अभिधा' किसे कहते हैं?
  39. प्रश्न- 'लक्षणा' किसे कहते हैं?
  40. प्रश्न- काव्य में व्यञ्जना शक्ति पर टिप्पणी कीजिए।
  41. प्रश्न- संलक्ष्यक्रम ध्वनि को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- दी गई पंक्तियों में में प्रयुक्त ध्वनि का नाम लिखिए।
  43. प्रश्न- शब्द शक्ति क्या है? व्यंजना शक्ति का सोदाहरण परिचय दीजिए।
  44. प्रश्न- वक्रोकित एवं ध्वनि सिद्धान्त का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  45. प्रश्न- कर रही लीलामय आनन्द, महाचिति सजग हुई सी व्यक्त।
  46. प्रश्न- वक्रोक्ति सिद्धान्त व इसकी अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  47. प्रश्न- वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजनावाद के आचार्यों का उल्लेख करते हुए उसके साम्य-वैषम्य का निरूपण कीजिए।
  48. प्रश्न- वर्ण विन्यास वक्रता किसे कहते हैं?
  49. प्रश्न- पद- पूर्वार्द्ध वक्रता किसे कहते हैं?
  50. प्रश्न- वाक्य वक्रता किसे कहते हैं?
  51. प्रश्न- प्रकरण अवस्था किसे कहते हैं?
  52. प्रश्न- प्रबन्ध वक्रता किसे कहते हैं?
  53. प्रश्न- आचार्य कुन्तक एवं क्रोचे के मतानुसार वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजना के बीच वैषम्य का निरूपण कीजिए।
  54. प्रश्न- वक्रोक्तिवाद और वक्रोक्ति अलंकार के विषय में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  55. प्रश्न- औचित्य सिद्धान्त किसे कहते हैं? क्षेमेन्द्र के अनुसार औचित्य के प्रकारों का वर्गीकरण कीजिए।
  56. प्रश्न- रसौचित्य किसे कहते हैं? आनन्दवर्धन द्वारा निर्धारित विषयों का उल्लेख कीजिए।
  57. प्रश्न- गुणौचित्य तथा संघटनौचित्य किसे कहते हैं?
  58. प्रश्न- प्रबन्धौचित्य के लिये आनन्दवर्धन ने कौन-सा नियम निर्धारित किया है तथा रीति औचित्य का प्रयोग कब करना चाहिए?
  59. प्रश्न- औचित्य के प्रवर्तक का नाम और औचित्य के भेद बताइये।
  60. प्रश्न- संस्कृत काव्यशास्त्र में काव्य के प्रकार के निर्धारण का स्पष्टीकरण दीजिए।
  61. प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  62. प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  63. प्रश्न- काव्यगुणों का उल्लेख करते हुए ओज गुण और प्रसाद गुण को उदाहरण सहित परिभाषित कीजिए।
  64. प्रश्न- काव्य हेतु के सन्दर्भ में भामह के मत का प्रतिपादन कीजिए।
  65. प्रश्न- ओजगुण का परिचय दीजिए।
  66. प्रश्न- काव्य हेतु सन्दर्भ में अभ्यास के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- काव्य गुणों का संक्षित रूप में विवेचन कीजिए।
  68. प्रश्न- शब्द शक्ति को स्पष्ट करते हुए अभिधा शक्ति पर प्रकाश डालिए।
  69. प्रश्न- लक्षणा शब्द शक्ति को समझाइये |
  70. प्रश्न- व्यंजना शब्द-शक्ति पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- काव्य दोष का उल्लेख कीजिए।
  72. प्रश्न- नाट्यशास्त्र से क्या अभिप्राय है? भारतीय नाट्यशास्त्र का सामान्य परिचय दीजिए।
  73. प्रश्न- नाट्यशास्त्र में वृत्ति किसे कहते हैं? वृत्ति कितने प्रकार की होती है?
  74. प्रश्न- अभिनय किसे कहते हैं? अभिनय के प्रकार और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- रूपक किसे कहते हैं? रूप के भेदों-उपभेंदों पर प्रकाश डालिए।
  76. प्रश्न- कथा किसे कहते हैं? नाटक/रूपक में कथा की क्या भूमिका है?
  77. प्रश्न- नायक किसे कहते हैं? रूपक/नाटक में नायक के भेदों का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- नायिका किसे कहते हैं? नायिका के भेदों पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- हिन्दी रंगमंच के प्रकार शिल्प और रंग- सम्प्रेषण का परिचय देते हुए इनका संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  80. प्रश्न- नाट्य वृत्ति और रस का सम्बन्ध बताइए।
  81. प्रश्न- वर्तमान में अभिनय का स्वरूप कैसा है?
  82. प्रश्न- कथावस्तु किसे कहते हैं?
  83. प्रश्न- रंगमंच के शिल्प का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  84. प्रश्न- अरस्तू के 'अनुकरण सिद्धान्त' को प्रतिपादित कीजिए।
  85. प्रश्न- अरस्तू के काव्यं सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।
  86. प्रश्न- त्रासदी सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  87. प्रश्न- चरित्र-चित्रण किसे कहते हैं? उसके आधारभूत सिद्धान्त बताइए।
  88. प्रश्न- सरल या जटिल कथानक किसे कहते हैं?
  89. प्रश्न- अरस्तू के अनुसार महाकाव्य की क्या विशेषताएँ हैं?
  90. प्रश्न- "विरेचन सिद्धान्त' से क्या तात्पर्य है? अरस्तु के 'विरेचन' सिद्धान्त और अभिनव गुप्त के 'अभिव्यंजना सिद्धान्त' के साम्य को स्पष्ट कीजिए।
  91. प्रश्न- कॉलरिज के काव्य-सिद्धान्त पर विचार व्यक्त कीजिए।
  92. प्रश्न- मुख्य कल्पना किसे कहते हैं?
  93. प्रश्न- मुख्य कल्पना और गौण कल्पना में क्या भेद है?
  94. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के काव्य-भाषा विषयक सिद्धान्त पर प्रकाश डालिये।
  95. प्रश्न- 'कविता सभी प्रकार के ज्ञानों में प्रथम और अन्तिम ज्ञान है। पाश्चात्य कवि वर्ड्सवर्थ के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  96. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के कल्पना सम्बन्धी विचारों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
  97. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार काव्य प्रयोजन क्या है?
  98. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार कविता में छन्द का क्या योगदान है?
  99. प्रश्न- काव्यशास्त्र की आवश्यकता का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  100. प्रश्न- रिचर्ड्स का मूल्य-सिद्धान्त क्या है? स्पष्ट रूप से विवेचन कीजिए।
  101. प्रश्न- रिचर्ड्स के संप्रेषण के सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  102. प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार सम्प्रेषण का क्या अर्थ है?
  103. प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार कविता के लिए लय और छन्द का क्या महत्व है?
  104. प्रश्न- 'संवेगों का संतुलन' के सम्बन्ध में आई. ए. रिचर्डस् के क्या विचारा हैं?
  105. प्रश्न- आई.ए. रिचर्ड्स की व्यावहारिक आलोचना की समीक्षा कीजिये।
  106. प्रश्न- टी. एस. इलियट के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। इसका हिन्दी साहित्य पर क्या प्रभाव पड़ा है?
  107. प्रश्न- सौन्दर्य वस्तु में है या दृष्टि में है। पाश्चात्य समीक्षाशास्त्र के अनुसार व्याख्या कीजिए।
  108. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव तथा विकासक्रम पर एक निबन्ध लिखिए।
  109. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
  110. प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी समीक्षा का क्या अभिप्राय है? विवेचना कीजिए।
  111. प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
  112. प्रश्न- आलोचना की पारिभाषा एवं उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न- हिन्दी की मार्क्सवादी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  114. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
  115. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  116. प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
  117. प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
  118. प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
  119. प्रश्न- विखंडनवाद को समझाइये |
  120. प्रश्न- यथार्थवाद का अर्थ और परिभाषा देते हुए यथार्थवाद के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  121. प्रश्न- कलावाद किसे कहते हैं? कलावाद के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  122. प्रश्न- बिम्बवाद की अवधारणा, विचार और उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  123. प्रश्न- प्रतीकवाद के अर्थ और परिभाषा का वर्णन कीजिए।
  124. प्रश्न- संरचनावाद में आलोचना की किस प्रविधि का विवेचन है?
  125. प्रश्न- विखंडनवादी आलोचना का आशय स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- उत्तर-संरचनावाद के उद्भव और विकास को स्पष्ट कीजिए।
  127. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की काव्य में लोकमंगल की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
  128. प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की आलोचना दृष्टि "आधुनिक साहित्य नयी मान्यताएँ" का उल्लेख कीजिए।
  129. प्रश्न- "मेरी साहित्यिक मान्यताएँ" विषय पर डॉ0 नगेन्द्र की आलोचना दृष्टि पर विचार कीजिए।
  130. प्रश्न- डॉ0 रामविलास शर्मा की आलोचना दृष्टि 'तुलसी साहित्य में सामन्त विरोधी मूल्य' का मूल्यांकन कीजिए।
  131. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की आलोचनात्मक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
  132. प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी की साहित्य की नई मान्यताएँ क्या हैं?
  133. प्रश्न- रामविलास शर्मा के अनुसार सामंती व्यवस्था में वर्ण और जाति बन्धन कैसे थे?

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